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तथ्य जाँचः क्या अरविंद केजरीवाल की तबीयत बहुत खराब है?

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सारांश 

सोशल मीडिया पर जारी कई पोस्ट्स के जरिए दावा किया जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल की तबीयत खराब हो गई है। जब हमने इन पोस्ट्स का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा ज्यादातर गलत है। 

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दावा 

सोशल मीडिया पर जारी कई पोस्ट्स के जरिए दावा किया जा रहा है कि ED द्वारा पकडे जाने पर अरविंद केजरीवाल की तबीयत बिगड़ गई है। इसके अलावा जेल में भी उनकी तबीयत खराब हो गई है। 

Kejariwal health

तथ्य जाँच 

क्या अरविंद केजरीवाल की तबीयत खराब है?

अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ने एक वीडियो जारी किया था, जिसमें वे अरविंद केजरीवाल की सेहत को लेकर कह रही हैं, “मैं कल शाम जेल में अरविंद जी से मिली। उन्हें मधुमेह है और उनका शुगर स्तर ठीक नहीं चल रहा है।” 

कथित शराब घोटाले के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अस्वस्थ हैं। उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ने उनसे मुलाकात के बाद कहा कि 55 वर्षीय अरविंद केजरीवाल मधुमेह के रोगी हैं और उनके रक्त शर्करा में उतार-चढ़ाव हो रहा है। कुछ सूत्रों के अनुसार केजरीवाल का रक्त शर्करा 46 के खतरनाक निम्न स्तर तक गिर गया है। लेकिन आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकी है और न ही अरविन्द केजरीवाल के डॉक्टर्स द्वारा कोई बयान दिया गया है।

क्या अरविंद केजरीवाल को अन्य स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत है?

कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स के जरिए अरविंद केजरीवाल की उन तस्वीरों को साझा किया जा रहा है, जिसमें उनकी पैंट गीली है। इन पोस्ट्स में बताया जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल की ऐसी हालत प्रवर्तन निदेशालय यानी की ईडी की कस्टडी में ले जाते वक्त हुई है, जबकि ये दावा बिल्कुल गलत है। 

इस पोस्ट में जिस तस्वीर को साझा किया गया है, वो तस्वीर अहमदाबाद की है, जब मेहसाणा में आयोजित होने वाले तिरंगा यात्रा में शामिल होने के लिए केजरीवाल गुजरात पहुंच थे। इस युट्युब वीडियो में अरविंद केजरीवाल ने जो शर्ट पहनी है, वही शर्ट उन्होंने इस वायरल पोस्ट में पहनी है। 

दूसरी ओर ईडी ने जिस दिन अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया है, उस दिन उन्होंने कोई और शर्ट पहन रखी थी। भ्रष्टाचार के आरोप के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ई़डी) ने 21 मार्च को अरविंद केजरीवाल को उनके आधिकारिक आवास से गिरफ्तार कर लिया था। अरविंद केजरीवाल की तबीयत बिगड़ी जरुर थी लेकिन इससे उनकी पैंट गीली नहीं हुई क्योंकि उस तस्वीर को एडिट करके बनाया गया है, जबकि असली फोटो यह है।  

अतः उपरोक्त जानकारी एवं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि यह दावा ज्यादातर गलत है। केजरीवाल कई वर्षों से मधुमेह के रोगी हैं अतः यह कहना कि उनकी तबियत जेल जाने पर ख़राब हुई, गलत है। हमने पहले भी इस तरह के दावों का खंडन किया है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं। 

तथ्य जाँचः क्या प्रधानमंत्री का आरक्षण विरोधी भाषण चुनाव से प्रेरित है?

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सारांश 

कई सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आरक्षण के खिलाफ हैं। जब हमने इन पोस्ट्स का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा गलत है। यहां इस गलत सूचना से तात्पर्य उस जानकारी से है, जो सत्य से उत्पन्न होती है लेकिन अक्सर इस तरह से बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जाती है, जो गुमराह करती है और संभावित नुकसान पहुंचाती है। 

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दावा 

कई सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि वे आरक्षण के खिलाफ हैं। इसे आप हां और यहां भी देख सकते हैं। 

तथ्य जाँच 

क्या नरेन्द्र मोदी ने वाकई आरक्षण के विरोध में भाषण दिया है? 

नहीं। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी ने आरक्षण के विरोध में राज्य सभा में भाषण तो नहीं दिया था लेकिन उन्होंने भूतपूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की चिट्टी को अवश्य पढ़ा था। पंडित नेहरु ने वो चिट्टी अपने सहयोगियों को लिखी थी, जिसके अंश को प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सभा में प्रस्तुत किया। इसकी रिपोर्टिंग विभिन्न न्यूज चैनल ने भी की थी। साथ ही इस विषय पर कई आलेख भी प्रकाशित किए गए थे। 

प्रधानमंत्री के जिस वीडियो को सोशल मीडिया पर क्लिप करके साझा किया जा रहा है, वह असल में राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब है। लोकसभा चुनाव से पहले संसद में अपने आखिरी संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जाति एवं सामाजिक स्तर को लेकर एक भाषण दिया जहाँ वे विपक्ष को बता रहे थे कि पिछड़ी जाति एवं आरक्षण को लेकर वर्तमान सरकार ने क्या-क्या किया है और इस सन्दर्भ में उन्होंने भूतपूर्व सरकार के कार्यों की चर्चा की। सदन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 75वां गणतंत्र दिवस देश की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। पीएम मोदी ने रेखांकित किया था कि राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में भारत के उज्ज्वल भविष्य के बारे में विश्वास व्यक्त किया और भारत के नागरिकों की क्षमता को स्वीकार किया। इस आधिकारिक वीडियो को आप प्रधानमंत्री के आधिकारिक युट्युब पर भी देख सकते हैं, जहां उन्होंने आरक्षण संबंधी बातें कही थी। 

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के दौरान कहा है-

पंडित नेहरु की इस चिट्टी को आप यहां पढ़ सकते हैं, (जवाहरलाल नेहरू, मुख्यमंत्रियों को पत्र 1947-1964, खंड 5, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1989, पीपी 456-7) साथ ही इस पुस्तक की pdf फाइल यहां संलग्न है।

क्या यह वीडियो सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ रहा है?

हाँ। अगर कोई पहली दफा इस वीडियो को देखेगा, तो उसी यही लगेगा कि यह बोल स्वयं प्रधानमंत्री के हैं क्योंकि इसकी पूरी क्लिपिंग को सोशल मीडिआ पर साझा नहीं किया रहा है। हालांकि इस वीडियो पर भरोसा करना इसलिए भी गलत है क्योंकि वर्तमान सरकार ने आरक्षण को लेकर कई प्रयास किए हैं। जैसे- नारी शक्ति वंदन अधिनियम के अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान है। 

चुनाव के दौरान इस तरह के क्लिप को साझा करना आपसी सौहार्द को भड़काने व मतदाताओं को गुमराह करने का प्रयास है, जिससे सामाजिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में जरुरी है कि आम जनता इस तरह के दावों पर बिल्कुल भरोसा ना करे और किसी भी वायरल दावे की पड़ताल जरुर करे। हमने पहले भी इस तरह के दावों की जाँच की है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।  

मनरेगा श्रमिकों की स्वास्थ्य चिंताएं दूर करना है जरुरी

मनरेगा श्रमिकों की परेशानी केवल आर्थिक तंगी तक सीमित नहीं है बल्कि स्वास्थ्य संबंधित समस्या भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। घंटों दिहाड़ी मजदूरी करने के बाद वे घर पर आते हैं लेकिन अपने साथ वे कार्यस्थल के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को भी लेकर आते हैं। 

शोध बताते हैं कि पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) यानी की हवा में मौजूद महीन कण फेफड़ों की समस्या को बढ़ा सकते हैं, जिससे क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) बीमारी एवं फेफड़ों का कैंसर होने का खतरा हो सकता है और परिणामस्वरूप मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है। हालांकि यह हवा में मौजूद कणों के आकार पर भी निर्भर करता है क्योंकि बड़े कण ऊपरी वायुमार्ग में जमा होते हैं और छोटे कण गहराई में प्रवेश कर जाते हैं।

अनेक बीमारियों की है जड़

सीओपीडी में फेफड़ों में सूजन की समस्या होती है, जो मुख्य रूप से हानिकारक गैसों और पीएम 4-7 कण के आकार के कारण होती है। हालांकि इसके अन्य जोखिमों के स्रोत में खाना पकाने के लिए ईंधन का जलना, घरों का प्रदूषित रहना और बाहरी वातावरण में काम करना भी शामिल है। 

बाहरी वातावरण में काम करने से धूल, कण, मिट्टी आदि के संपर्क में लगातार रहना पड़ता है, जिस कारण सांस संबंधित परेशानी होना लाजिमी है। मनरेगा में बतौर काम करने वाली पूजा बताती हैं कि लगातार धूल, मिट्टी, सीमेंट आदि के संपर्क में रहने से खांसी, फेफड़ों में तकलीफ होने की परेशानी होती है। जैसे- कफ की समस्या होने पर तुरंत ना ठीक होना, हल्के धुएं के संपर्क में आने पर भी सांस फुलने लगना, आदि। 

सुविधाओं की पहुंच है दूर

MANREGA

वहीं मनरेगा में बतौर संघ नेता कार्य कर रहे संजय साहनी बताते हैं, “मनरेगा में कई खामियां हैं, तो ऐसे में हम मजदूर किसी तरह के सुविधा के बारे में कैसे सोच सकते हैं? कई बार काम करने के दौरान किसी मजदूर को चोट लग जाती है या वो गंभीर रुप से घायल भी हो जाते हैं, तो तत्कालीन तौर पर कोई सुविधा नहीं मिलती है। चाहे कड़ाके की ठंड हो या तपती धूप हो, हम हर परिस्थिति में काम करते हैं लेकिन अफसोस इस बात का है कि हमें अपने मेहनत के अनुरुप सुविधाएं नहीं दी जाती हैं।” 

वे आगे बताते हैं कि देखा जाए, तो मनरेगा मजदूरों को कई सुविधाओं की दरकार है। जैसे- 

  1. वित्तीय सुरक्षा: दुर्घटनाओं, बीमारी या मृत्यु के मामले में बीमा का अधिकार ताकि श्रमिक के परिवार को वित्तीय सहायता मिल सके। 
  2. चिकित्सा पहुंच: बीमा कवरेज, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा और उपचार तक पहुंच की सुविधा प्रदान करना ताकि श्रमिकों और उनके परिवार का समग्र विकास हो सके। 

हालांकि मनरेगा श्रमिकों के लिए कुछ योजनाएं सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं, जिसका लाभ वे ले सकते हैं मगर परेशानी केवल इस बात की है कि अधिकांश मजदूरों को इन योजनाओं की जानकारी ही नहीं है। 

सरकार द्वारा जारी योजनाएं

सरकार अपनी तरफ से मनरेगा श्रमिकों एवं अन्य लोगों के लिए बीमा योजनाएं चला रही है, जिसकी मदद से लोग ना केवल अपना स्वास्थ्य बल्कि परिवार की खुशी भी सुनिश्चित कर सकते हैं। इसमें से कुछ मुख्य योजनाएं निम्नलिखित है-

  • जनश्री बीमा योजना (JBY): यह योजना जीवन बीमा कवर प्रदान करती है, जिसमें आकस्मिक मृत्यु या स्थायी विकलांगता के लिए 75,000 रुपये दिए जाते हैं। वहीं आंशिक विकलांगता के लिए 30,000 रुपयों की मदद की जाती है। इसमें वे सभी मनरेगा श्रमिक शामिल हैं, जिन्होंने वर्ष में कम से कम 15 दिन काम किया है। 
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना  (RSBY): यह योजना स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करती है। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को प्रति वर्ष 50,000 रुपये दिए जाने का प्रावधान है, जिसमें मनरेगा श्रमिक भी शामिल हैं, जिन्होंने पिछले वित्तीय वर्ष में कम से कम 15 दिन काम किया हो।
  • प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY): यह योजना आकस्मिक मृत्यु और विकलांगता कवर प्रदान करती है। इसमें 12 रुपये प्रति वर्ष का प्रीमियम भरने पर क्रमशः 1 से 2 लाख रुपये प्रदान किए जाते हैं। 
Dr Saket Sharma

डॉ. साकेत शर्मा (एमडी, डीएम सीनियर कंसलटेंट पलमोनरी मेडिसिन, जयप्रभा मेदांता हॉस्पिटल, पटना) बताते हैं, “प्रदूषित हवा में सांस लेना गंभीर परिणाम देने वाला हो सकता है क्योंकि प्रदूषित हवा, धूल, कण, सीमेंट, मिट्टी आदि में लगातार संपर्क में रहने के कारण फेफड़ों से जुड़ी समस्या हो सकती है। इसमें फेफड़े का कैंसर प्रमुख है। हालांकि धूम्रपान करना फेफड़ों के कैंसर होने का एक प्रमुख कारण है। साथ ही जो लोग asbestos आदि के संपर्क में रहते हैं, उन्हें भी फेफड़ों का कैंसर होने की संभावना होती है। इस तरह के कैंसर या बीमारी को occupational hazards कहा जाता है। इससे बचने के लिए जरुरी है कि श्रमिकों को उचित एवं जरुरत अनुसार सुरक्षात्मक किट प्रदान किए जाएं।”

डॉ. शर्मा आगे बताते हैं, “हालांकि इसके लक्षणों को बिना नजरअंदाज किए और सतर्क रहकर इसके खतरे को कम किया जा सकता है, जैसे- लंबे समय तक खांसी होना, छाती में दर्द होना, खांसी के साथ खून आना, आदि। फेफड़ों के कैंसर की जांच के लिए बायोप्सी की जाती है और बाकी अलग-अलग तरह के उपचार और बायोप्सी हैं, जिससे कैंसर की पहचान की जाती है। इसके अलावा वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से सीओपीडी का खतरा भी बढ़ जाता है क्योंकि घर में या कार्यस्थल पर वायु प्रदूषण के संपर्क में आना, पारिवारिक इतिहास और निमोनिया जैसे सांस संक्रमण भी इसके जोखिम को बढ़ा सकते हैं।”

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संजय साहनी बताते हैं कि अधिकांश श्रमिकों को इन योजनाओं की जानकारी नहीं होती है। इसके अलावा अगर हम अपनी तरफ से श्रमिकों को इन योजनाओं की जानकारी देते हैं या उन्हें बीमा आदि को लेकर जागरुक करते हैं, तो भी वे कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं देते हैं क्योंकि इन कामों में लंबा वक्त लगता है और श्रमिक सोचते हैं कि एक भी दिन काम ना रुके। ऐसे में अगर कैम्प लगाकर श्रमिकों को इन योजनाओं में शामिल किया जाए, तो बेहतर होगा। जैसे- मनरेगा श्रमिकों के कस्बों या गांवों में सप्ताह में जरुरत अनुसार कैम्प लगाया जाए। इसके अलावा सरकार द्वारा मेडिकल कैम्प के जरिए भी मनरेगा श्रमिकों की जांच सुनिश्चित की जा सकती है। 

तथ्य जाँचः क्या खीरा, धनिया, नींबू और अदरक के पेय का सेवन करने से वजन नहीं बढ़ता है?

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सारांश 

एक फेसबुक पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि खीरा, धनिया, नींबू और अदरक का सेवन करने से वजन नहीं बढ़ता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा ज्यादातर गलत है। 

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दावा 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि खीरा, धनिया, नींबू और अदरक का सेवन करने से वजन नहीं बढ़ता है। 

weight loss claim

तथ्य जाँच 

वजन क्यों बढ़ता है? 

वजन बढ़ने के अनेक कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं- 

  • अत्यधिक कैलोरी का सेवन करना शोध के अनुसार आप जितनी कैलोरी जलाते हैं या खत्म करते हैं, उससे कहीं अधिक कैलोरी का सेवन करना वजन बढ़ने का सबसे आम कारण है। यदि आप लगातार अपने शरीर द्वारा ऊर्जा के लिए खर्च की जाने वाली कैलोरी से अधिक कैलोरी खाते और पीते हैं, तो अतिरिक्त कैलोरी वसा के रूप में जमा हो जाती है। यह विभिन्न कारकों के कारण हो सकता है। जैसे- प्रसंस्कृत या शर्करा युक्त खाद्य पदार्थों से भरपूर आहार का सेवन करना या लंबे अंतराल के बाद अधिक मात्रा में भोजन करना। 
  • शारीरिक गतिविधि में कमी: शारीरिक गतिविधि कम होने से भी कैलोरी का इस्तेमाल कम होता है और वजन बढ़ने लगता है। इसके अलावा उम्र भी एक भूमिका निभा सकती है क्योंकि समय के साथ चयापचय स्वाभाविक रूप से धीमा हो जाता है।
  • चिकित्सीय स्थितियां: शोध बताते हैं कि कुछ चिकित्सीय स्थितियां, जैसे- हाइपोथायरायडिज्म, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस), कुशिंग सिंड्रोम शरीर के हार्मोन और मेटाबॉलिज्म को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे वजन बढ़ सकता है। 
  • कुछ दवाओं का सेवन: शोध के मुताबित कुछ दवाएं, जैसे- अवसादरोधी (antidepressants), स्टेरॉयड और Birth Control Pills भी दुष्प्रभाव के रूप में वजन बढ़ा सकती हैं। 
  • इसके अलावा तनाव, नींद की कमी और यहां तक कि आनुवंशिकता भी वजन बढ़ने में भूमिका निभा सकती है। 

क्या खीरा, धनिया, नींबू और अदरक वजन नहीं बढ़ने देता है?

संभवतः नहीं। हालांकि खीरे, धनिया, नींबू और अदरक का मिश्रण ताज़ा हो सकता है और कुछ स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकता है, लेकिन वजन बढ़ने से रोकने के इसके दावे का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

Cucumber (Cucumis sativus L. शोध के अनुसार खीरा में 90% तक पानी की मात्रा होती है, जो शरीर में पानी की कमी को पूरी करता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बिल्कुल नगण्य होती है। अगर खीरा नियमित तौर पर खाया जाए, तो यह मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने, रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कम करने और त्वचा पर बढ़ते उम्र के प्रभावों को कम करता है। खीरा में कैलोरी की मात्रा बहुत कम पाई जाती है लेकिन खीरा मोटापा कम करेगा या वजन बढ़ने से रोकेगा, इस विषय में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। 

Nutritional and medicinal aspects of coriander (Coriandrum sativum L.): A review के अनुसार धनिया के बीज और पत्तियों के बारे में वर्तमान में उपलब्ध जानकारी अपर्याप्त है। धनिया में एंटीऑक्सिडेंट्स, विटामिन, खनिज, कैरोटीनॉयड और पॉलीफेनोल्स मौजूद होते हैं लेकिन इस विषय पर गहन शोध की आवश्यकता है कि ये किस प्रकार मानव स्वास्थ्य को बेहतर करने में अपनी भूमिका निभाते हैं। हालांकि अनुसंधान इस बात का समर्थन करता है कि धनिया बढ़ते उम्र के प्रभावों को कम करता है लेकिन वजन नियंत्रित करने, वजन ना बढ़ने देने या मोटापा कम करने को लेकर पुष्टि नहीं करता है। 

नींबू विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत है, जो बेहतर पाचन में मदद करता है। इसमें मूत्रवर्धक गुण भी होते हैं, जो शरीर को डिटॉक्सीफाई करने में मदद कर सकते हैं, जिसे वसा को कम करने में मदद मिलती है। नींबू को मेटाबॉलिज्म को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है, लेकिन इसकी अधिक मात्रा पेट को खराब कर सकती है और दांतों को प्रभावित कर सकती है। वहीं वजन को बढ़ने से रोकने और नींबू के संबंध में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

वहीं अदरक अपने एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी (सूजनरोधी) गुणों के कारण वजन कम करने में मदद कर सकता है। यह पाचन को बढ़ाता है और आपकी भूख को कम करता है लेकिन इसके कुछ दुष्प्रभाव यह कब्ज और पेट फूलना जैसे विशिष्ट दुष्प्रभाव भी पैदा कर सकता है। यदि कोई खून पतला करने वाली दवा ले रहा है या स्तनपान करा रहा है या गर्भवती है तो उसे डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

Dietician Priyamwada Dixit

चीफ डायटिशियन एवं डायबिटीज प्रशिक्षक डॉ. प्रियंवदा दीक्षित ने दावे के विषय में कहा, “खीरा, धनिया, नींबू और अदरक को एक साथ मिला देना कई लोगों के लिए हानिकारक हो सकता है। साथ ही मोटापा कई कारणों से होता है, जैसे- खराब दिनचर्या, असमय भोजन, रात में गरिष्ठ आहार लेना, किसी दवा का प्रभाव या बीमारियों जैसे- थायरॉयड, मधुमेह आदि के कारण भी मोटापा बढ़ सकता है इसलिए इन सबको एक साथ मिलाकर पीने से मोटापा कम नहीं हो सकता या वजन कम नहीं हो सकता बल्कि हो सकता है कि कुछ लोगों में किसी प्रकार की एलर्जी या अन्य समस्या उतपन्न हो जाए। वजन नियंत्रित रखने के लिए एक्सरसाइज, पूरी नींद लेना, कैलोरी के सेवन पर नजर रखना, सही समय पर भोजन करना और तनाव से दूर रहना जरुरी है।”

अतः उपरोक्त दावों और चिकित्सकों के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि खीरा, धनिया, नींबू और अदरक को मिलाकर बनाए गए पेय का सेवन करने से वजन नहीं बढ़ता है, यह दावा ज्यादातर गलत है क्योंकि वजन बढ़ने को लेकर कोई एक आधार नहीं है बल्कि कई बीमारियां, दिनचर्या, खानपान आदि भी वजन को प्रभावित करते हैं। ऐसे में किसी भी तरह के भ्रामक दावों पर भरोसा करके किसी भी पेय का सेवन करना संक्रमण कारक हो सकता है। इस विषय पर और जानकारी हेतु अभी और शोध की आवश्यकता है।

क्या गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लक्षण अचानक आते हैं?

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क्या गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के लक्षण अचानक होते हैं?
नहीं, सर्वाइकल कैंसर के लक्षण आमतौर पर अचानक प्रकट नहीं होते हैं। हालांकि, एक बार जब कोई व्यक्ति लक्षण प्रदर्शित करना शुरू कर देता है, तो यह बना रहता है। अधिकांश मामलों में गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं, लेकिन कुछ महिलाओं को बाद के चरणों में असामान्य योनि रक्तस्राव के साथ-साथ असामान्य योनि निर्वहन, सेक्स के दौरान दर्द, श्रोणि या पीठ के निचले हिस्से में दर्द, पैरों की सूजन आदि का अनुभव हो सकता है।

सर्वाइकल कैंसर दुनिया भर में शीर्ष स्त्री रोग संबंधी कैंसर में से एक है। 2022 में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि यह सभी कैंसरों में चौदहवां और दुनिया भर में महिलाओं में कैंसर के प्रसार के मामले में चौथा सबसे अधिक होने वाला कैंसर है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि क्या कैंसर के लक्षण अचानक आते हैं और क्या इसका प्रारंभिक चरण में निदान किया जा सकता है।

क्या गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के लक्षण अचानक प्रकट होते हैं?

बिल्कुल नहीं, गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लक्षण अचानक आने की संभावना नहीं है, लेकिन आमतौर पर एक बार प्रकट होने के बाद बने रहते हैं। ज्यादातर मामलों में, इसमें कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। हालांकि, कुछ महिलाएं बाद के चरणों में असामान्य योनि रक्तस्राव से पीड़ित हो सकती हैं। इस स्थिति में योनि से असामान्य स्राव, संभोग के दौरान दर्द, श्रोणि क्षेत्र या पीठ के निचले हिस्से में दर्द, पैरों की सूजन, अनियमित पेशाब या मल त्याग और मूत्र में खून भी हो सकता है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट (एसीओजी) के अनुसार गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर को विकसित होने में कई साल लगते हैं। डिस्प्लासिया या सर्वाइकल इंट्रापिथेलियल नियोप्लासिया प्रारंभिक कोशिका परिवर्तनों को संदर्भित करता है। ज्यादातर मामलों में प्रारंभिक चरण के गर्भाशय ग्रीवा कैंसर में कोई लक्षण मौजूद नहीं होते हैं। हालाँकि, उपर्युक्त लक्षण तब प्रकट होते हैं जब कैंसर पास के ऊतकों में विकसित हो जाता है।

क्या गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में निदान किया जा सकता है?

सर्वाइकल कैंसर के शुरुआती चरण आमतौर पर किसी भी लक्षण के साथ मौजूद नहीं होते हैं। गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के शुरुआती चरण में लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है। गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के पहले संकेतों को विकसित होने में कई साल लग सकते हैं।

Cancer.org वेबसाइट बताती है कि आमतौर पर गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर को विकसित करने में कई साल लगते हैं, लेकिन यह एक साल से भी कम समय में हो सकता है। सर्वाइकल कैंसर धीरे-धीरे बढ़ता है। साथ ही, इसकी घातकता समय के साथ बढ़ती जाती है। विषाक्त कोशिकाओं को गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का कारण बनने में कई साल लगते हैं। ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) को गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का कारण बनने में लंबा समय लगता है।

सर्वाइकल कैंसर का जल्दी पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका नियमित रूप से जाँच करना है। गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की जांच के दौरान किसी भी असामान्य कोशिका की उपस्थिति प्रारंभिक निदान में मदद कर सकती है, जिसके बाद प्रारंभिक चिकित्सा हस्तक्षेप किया जा सकता है। सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग के लिए परीक्षण एचपीवी परीक्षण और पैप परीक्षण हैं। एचपीवी और पैप दोनों परीक्षण एक ही समय में भी किए जा सकते हैं (जिसे सह-परीक्षण कहा जाता है)।

गर्भाशय ग्रीवा कैंसर की जाँच कितनी बार की जानी चाहिए?

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गर्भाशय ग्रीवा कैंसर का परीक्षण कब और कैसे करना चाहिए ?
मुझे अपने गर्भाशय ग्रीवा कैंसर की जाँच कब करनी चाहिए?
20 साल की उम्र के बाद महिलाओं को गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की जांच शुरू कर देनी चाहिए और इसे हर 3 साल में करना चाहिए। यदि कोई महिला 30 से 65 वर्ष की आयु के बीच है, तो वे या तो हर पांच साल में एचपीवी परीक्षण और हर तीन साल में पैप परीक्षण या दोनों कर सकती हैं। 65 वर्षों के बाद, डॉक्टर यह निर्धारित करेंगे कि आपको जाँच की आवश्यकता है या नहीं।

गर्भाशय ग्रीवा कैंसर की जांच महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मानव पेपिलोमावायरस (एचपीवी) की उपस्थिति या अनुपस्थिति के लिए गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं की जांच करती है। इस लेख में, हम सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग के बारे में जानेंगे, किसकी स्क्रीनिंग की जानी चाहिए, कब स्क्रीनिंग की जानी चाहिए, और स्क्रीनिंग करना क्यों महत्वपूर्ण है।

सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग क्या है?

सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग लक्षण उत्पन्न होने से पहले कैंसर की जांच करने की एक प्रक्रिया है। कैंसर को विकसित होने से रोकने के लिए प्रीकेन्सरस सर्वाइकल सेल परिवर्तनों का पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग करवाना आवश्यक है। यदि सर्वाइकल कैंसर प्रारंभिक अवस्था में पाया जाता है, तो लक्षण दिखाई देने पर इसका इलाज करना आसान हो जाता है, पूर्व-कैंसर कोशिकाएं फैलने लगती हैं, और उपचार अधिक कठिन हो जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला स्क्रीनिंग टेस्ट साइटोलॉजी (पैप स्मीयर) है। इसके अलावा, कम संसाधन सेटिंग्स के मामलों में, एचपीवी परीक्षण और एसिटिक एसिड (वीआईए) के साथ दृश्य निरीक्षण को प्रभावी माना जाता है। एचपीवी परीक्षण मानव पेपिलोमावायरस (एचपीवी) की खोज करता है जो गर्भाशय ग्रीवा में कोशिका परिवर्तन का कारण बन सकता है।

पैप परीक्षण (या पैप स्मीयर) गर्भाशय ग्रीवा पर पूर्व-कैंसर कोशिकाओं या कोशिका परिवर्तनों की तलाश करता है, जो गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर में प्रगति कर सकते हैं।

सर्वाइकल कैंसर की जाँच किसे करानी चाहिए?

कुछ लोगों को दूसरों की तुलना में गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का खतरा अधिक होता है। ऐसी महिलाओं को गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लिए समय पर जाँच करानी चाहिए। गर्भाशय ग्रीवा का एक उच्च जोखिम वाला एच. पी. वी. संक्रमण एक लगातार संक्रमण का कारण बन सकता है जो गंभीर गर्भाशय ग्रीवा कोशिका परिवर्तन का कारण बन सकता है जो गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर में विकसित हो सकता है। इन जोखिम कारकों में शामिल हैंः

  1. एक प्रतिरक्षाविहीन या कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली।
  2. सेकेंड हैंड धुएँ में नियमित रूप से धूम्रपान करने या सांस लेने का इतिहास
  3. कम उम्र में यौन सक्रिय होना
  4. मौखिक गर्भ निरोधकों (गर्भ निरोधक गोलियों) का उपयोग या कई बच्चों को जन्म देना। हालाँकि, इसके पीछे का कारण अभी तक अच्छी तरह से समझ में नहीं आया है।

सर्वाइकल कैंसर के लिए कब जाँच कराई जाए?

स्क्रीनिंग की आवश्यकता उम्र के आधार पर अलग-अलग होती है। एक महिला को 21 साल की उम्र में ही गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की जांच शुरू कर देनी चाहिए। यदि परिणाम सामान्य हैं, तो अगला परीक्षण तीन साल बाद दोहराया जाना चाहिए।

यदि कोई महिला 30 से 65 वर्ष की आयु के बीच है, तो वह या तो हर पांच साल में एचपीवी परीक्षण कर सकती है और हर तीन साल में पैप परीक्षण कर सकती है या एचपीवी और पैप परीक्षण दोनों कर सकती है, जिन्हें क्रमशः 5 और 3 साल में दोहराया जाता है। 65 साल के बाद, एक डॉक्टर को यह जांचना चाहिए कि क्या एक महिला को स्क्रीनिंग से गुजरना चाहिए।

सर्वाइकल कैंसर की जाँच करवाना क्यों आवश्यक है?

यदि जाँच परीक्षण का परिणाम सकारात्मक है या जाँच के दौरान किसी भी प्रकार के एचपीवी की उपस्थिति है, तो इन कोशिकाओं की आगे असामान्य परिवर्तनों के लिए जाँच की जाती है। यदि असामान्य कोशिकाओं का इलाज नहीं किया जाता है, तो वे गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर में बदल सकते हैं। आमतौर पर, गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं में उच्च श्रेणी के परिवर्तनों को कैंसर बनने में कुछ साल लगते हैं। सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग कैंसर बनने से पहले इन परिवर्तनों का पता लगा सकती है। उच्च श्रेणी के परिवर्तन वाली महिलाएं कोशिकाओं को हटाने के लिए उपचार प्राप्त कर सकती हैं। हालांकि, कम श्रेणी के परिवर्तन वाली महिलाओं में यह जांचने के लिए लगातार परीक्षण की आवश्यकता होती है कि क्या असामान्य कोशिकाएं सामान्य हो जाती हैं। 

क्या सर्वाइकल कैंसर संक्रामक है?

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क्या सर्वाइकल कैंसर दूसरे व्यक्ति को संक्रमण दे सकता है?
सर्वाइकल कैंसर संक्रामक नहीं हैं। हालाँकि, सर्वाइकल कैंसर के प्रमुख जोखिम कारकों में से एक ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) है। इस वायरस से होने वाला संक्रमण संक्रामक हो सकता है और वायरस वाले लोगों के बीच यौन संपर्क से फैल सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लगभग 70% सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) के संक्रमण के कारण होते हैं। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि क्या सर्वाइकल कैंसर एक प्रकार का STD है, और क्या सर्वाइकल कैंसर संक्रामक है।

क्या सर्वाइकल कैंसर एक प्रकार का यौन संचारित रोग (एसटीडी) है?

सर्वाइकल कैंसर यौन संपर्क के माध्यम से नहीं फैलता है। कैंसर रिसर्च यूके का कहना है कि सर्वाइकल कैंसर संक्रामक नहीं है। यह संभोग के परिणामस्वरूप भागीदारों के बीच नहीं फैलता है। हालाँकि, ज्यादातर मामलों में सर्वाइकल कैंसर का कारण ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) होता है। एच. पी. वी. कुछ कैंसर के खतरे को बढ़ाता है और संभोग के माध्यम से एक साथी से दूसरे साथी में जा सकता है।

एचपीवी सबसे आम यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) में से एक है। यह किसी भी प्रकार के यौन संपर्क से फैल सकता है, जैसे कि वायरस वाले किसी व्यक्ति के साथ योनि, गुदा या मौखिक सेक्स करना। इसके अलावा, यह त्वचा से त्वचा के करीबी संपर्क से भी फैलता है। याद रखें, एचपीवी से पीड़ित कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को संक्रमण दे सकता है, भले ही उनमें कोई संकेत या लक्षण न दिखें।

संक्षेप में, एक बार जब आपको बीमारी हो जाती है तो सर्वाइकल कैंसर संक्रामक नहीं होता है। हालांकि, एचपीवी वायरस का संक्रमण संक्रामक हो सकता है।

क्या सर्वाइकल कैंसर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है?

एक महिला सर्वाइकल कैंसर किसी पुरुष या किसी और को नहीं फैला सकती क्योंकि सर्वाइकल कैंसर संक्रामक या संक्रामक नहीं है। हालांकि, गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लिए प्रमुख जोखिम कारक एचपीवी है, जो मुख्य रूप से यौन संपर्क के माध्यम से फैलता है। कुछ प्रकार के मानव पेपिलोमावायरस (एचपीवी) के साथ लंबे समय तक चलने वाला संक्रमण गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का मुख्य कारण है। सुरक्षित यौन अभ्यास एचपीवी के संचरण के जोखिम को कम कर सकते हैं।

सर्वाइकल कैंसर जीन के माध्यम से फैलने की संभावना रखता है। सर्वाइकल कैंसर कुछ परिवारों में हो सकता है। यदि किसी महिला की माँ या बहन को सर्वाइकल कैंसर था, तो इस स्थिति की संभावना उन लोगों की तुलना में अधिक होती है जिनका कोई पारिवारिक इतिहास नहीं है। आनुवंशिक महामारी विज्ञान अध्ययनों से पता चलता है कि आनुवंशिक कारक रोग के जोखिम में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।

क्या मोटापा गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का कारण या लक्षण हो सकता है?

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अगर मैं मोटी हूँ तो क्या मुझे सर्वाइकल कैंसर हो सकता है?
हालांकि अधिक वजन और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बीच कोई संबंध नहीं है, मोटापा गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बढ़ते जोखिम के साथ कमजोर रूप से जुड़ा हुआ है। हालाँकि, इस विषय पर निर्णायक रूप से कुछ भी कहने के लिए पर्याप्त अध्ययन और शोध की कमी है।

भारत में महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर सबसे आम है। हालाँकि, अधिकांश महिलाओं में इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि क्या सर्वाइकल कैंसर वजन बढ़ाने का कारण बन सकता है और क्या मोटापा गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का कारण बन सकता है।

क्या सर्वाइकल कैंसर वजन बढ़ाने का कारण बन सकता है?

वास्तव में, कई अन्य कैंसरों की तरह भूख न लगने के साथ गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का एक संबंध है। इसके अतिरिक्त, भोजन की मात्रा की परवाह किए बिना वजन घटाना एक समस्या हो सकती है।

सर्जरी और रेडियोथेरेपी से गुजर रहे गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के रोगियों के लिए नैदानिक प्रबंधन का एक आवश्यक पहलू जीवन शैली में संशोधन की सिफारिश है। शरीर के सामान्य वजन को बनाए रखने से उपचार के परिणाम में सुधार हो सकता है। इसलिए, गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के रोगियों में उपचार के संबंध में, उन लोगों के मामलों में सावधानीपूर्वक अवलोकन किया जाना चाहिए जो अधिक वजन या मोटे हैं।

क्या मोटापा गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का कारण बन सकता है?

शोध बताते हैं कि लगभग 20% गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर को हमारे अध्ययन में महिलाओं में अधिक वजन या मोटापे के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो नियमित गर्भाशय ग्रीवा स्क्रीनिंग से गुजरती हैं। इसी तरह, एक शोध के अनुसार, बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बीच एक मामूली सकारात्मक संबंध है। मोटापे और कैंसर की पुनरावृत्ति और मृत्यु दर के जोखिम में वृद्धि के बीच एक संबंध है। यह सबसे अधिक संभावना रोगी में मौजूद उपचार और/या सह-रुग्णताओं के कारण होता है।

शोध संकेत देते हैं कि मोटापा (बॉडी मास इंडेक्स-बीएमआई> 30) और अधिक वजन (बीएमआई> 25) का कई कैंसर के जोखिम में वृद्धि के साथ सीधा संबंध है। इसके पीछे का कारण आनुवंशिक परिवर्तन, वसा-ऊतक से संबंधित सूजन परिवर्तन, अंतर्जात हार्मोन के चयापचय में परिवर्तन और विशिष्ट प्रोटीन और साइटोकिन्स का उत्पादन हो सकता है। गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के रोगी जो मोटे होते हैं, विशेष रूप से रजोनिवृत्ति के बाद की अवधि में, उच्च मृत्यु दर दिखाते हैं क्योंकि मोटापे से ग्रस्त महिलाएं कैंसर की घटना के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। वे संभवतः नियमित कैंसर जांच से चूक जाएंगे, जिससे उन्हें विलंबित निदान के लिए अधिक जोखिम होगा, अंततः रोग का निदान बिगड़ जाएगा।

2016 में किए गए एक मेटा-विश्लेषण से संकेत मिलता है कि गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बढ़ते जोखिम के साथ अधिक वजन होने का कोई संबंध नहीं है। लेकिन मोटापा गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बढ़ते जोखिम से कमजोर रूप से जुड़ा हुआ है। फिर भी, हमें इस पर निर्णायक प्रमाण देने के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।

चाय में होते हैं कई लाभकारी पोषक तत्व, जानें इसके लाभ और उपयोग

चाय के आश्चर्यजनक स्वास्थ्य लाभ और चिकित्सीय गुण क्या हैं?
चाय के एंटीऑक्सीडेंट गुण व मसालों के मिश्रण पाचन में और संभावित रूप से प्रतिरक्षा प्रणाली में सहायक हो सकते हैं। इसके चिकित्सीय गुणों में सूजन को कम करना, विश्राम को बढ़ावा देना और संभावित रूप से हृदय स्वास्थ्य का मदद करना शामिल है। अदरक, दालचीनी और इलायची जैसी सामग्रियों के साथ, चाय कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान कर सकती है, हालांकि व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएं भिन्न हो सकती हैं।

चाय एक ऐसा पेय है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी। यह दूध और सुगंधित मसालों और दालचीनी, इलायची, अदरक, लौंग और काली मिर्च के दाने सहित जड़ी-बूटियों के मिश्रण के साथ बनाया जाता है। इसे अक्सर चीनी के साथ मीठा किया जाता है और दूध के साथ मिलाया जाता है, जिससे एक समृद्ध और स्वादिष्ट पेय बनता है। लोग चाय के गर्म और आरामदायक स्वाद के लिए इसका आनंद लेते हैं। यह न केवल भारत में बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भी लोकप्रिय है। कुछ स्थानों पर लोग इसे ‘मसाला चाय’ भी कहते हैं।

चाय के क्या लाभ हैं?

चाय, काली चाय, दूध, मसालों (जैसे दालचीनी, इलायची, लौंग और अदरक) और चीनी या शहद जैसे मिठास से बना एक पारंपरिक भारतीय पेय है, जो कई संभावित स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता हैः

  • एंटीऑक्सीडेंट गुणः काली चाय में पॉलीफेनोल जैसे एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो कोशिकाओं को मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद कर सकते हैं।
  • पाचन में सुधारः लोग पारंपरिक रूप से चाय में मसालों का प्रयोग करते हैं, विशेष रूप से अदरक, दालचीनी और इलायची। ये पाचन में सहायक होते हैं और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल असुविधा को कम करते हैं।
  • प्रतिरक्षा कार्य में वृद्धिः चाय में जिन मसालों का प्रयोग किया जाता है जैसे अदरक, लौंग और काली मिर्च, इनमें रोगाणुरोधी गुण होते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन करने में मदद कर सकते हैं।
  • सूजन में कमीः चाय में प्रयोग किये जाने वाले कुछ मसालों जैसे अदरक और दालचीनी में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो शरीर में सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं।
  • ऊर्जा में वृद्धिः चाय के लाभों में से एक यह है कि इसे पीने के बाद आप ऊर्जा महसूस कर सकते हैं। चाय कैफीन होता है, जो मध्यम ऊर्जा को बढ़ावा दे सकता है। हालांकि, कैफीन की मात्रा बनाने की विधि और चाय और दूध के अनुपात के आधार पर भिन्न हो सकती है।
  • हृदय स्वास्थ्य में सुधारः कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि काली चाय में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट हृदय रोग के जोखिम को कम करके और एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करके हृदय स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
  • मनोदशा में वृद्धिः दालचीनी और इलायची जैसे मसालों के संभावित मनोदशा बढ़ाने वाले प्रभावों के साथ चाय की गर्मी और आरामदायक सुगंध, विश्राम को बढ़ावा देने और तनाव को कम करने में मदद कर सकती है।
  • वजन प्रबंधनः जबकि चाय अपने आप में वजन घटाने का उपाय नहीं है, इसे शर्करा युक्त कॉफी पेय या सोडा जैसे उच्च कैलोरी पेय पदार्थों के स्थान पर रखने से समग्र कैलोरी का सेवन कम हो सकता है, जो संतुलित आहार के हिस्से के रूप में वजन प्रबंधन में सहायता कर सकता है।

चाय कितने प्रकार की होती है?

चाय के कई प्रकार हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना अनूठा स्वाद है। कुछ सामान्य प्रकारों में शामिल हैंः

मसाला चायः यह पारंपरिक भारतीय चाय है जिसे दालचीनी, इलायची, अदरक, लौंग और काली मिर्च जैसे मसालों के मिश्रण से बनाया जाता है इससे चीनी और दूध के साथ मिलाकर सेवन किया जाता है।

अदरक चायः यह मुख्य रूप से अदरक के साथ मिलाया जाता है, जो एक मसालेदार और गर्म स्वाद जोड़ता है।

इलायची चायः इस प्रकार की चाय में इलायची प्रमुख मसाला है, जो एक मीठा और सुगंधित स्वाद देता है।

कश्मीरी कहवाः भारत के कश्मीर क्षेत्र की चाय का एक प्रकार, जिसे हरी चाय, केसर, इलायची और बादाम से बनाया जाता है, जिसे अक्सर खुबानी या चेरी जैसे सूखे मेवों से सजाया जाता है।

एक दिन में कितने कप चाय पीना सुरक्षित है?

चाय की अनुशंसित मात्रा अलग-अलग होती है। आम तौर पर, विशेषज्ञ अधिकांश वयस्कों के लिए प्रति दिन 2 से 3 कप चाय का सेवन करना सुरक्षित मानते हैं। हालांकि, चाय में कैफीन और अन्य यौगिकों के प्रति व्यक्तिगत सहिष्णुता भिन्न हो सकती है, इसलिए अपने शरीर की बात सुनना और उसके अनुसार उपभोग को समायोजित करना महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, जो लोग कैफीन का सेवन सीमित करना चाहते हैं, उनके लिए डिकैफ़िनेटेड या हर्बल चाय चुनना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

क्या चाय मुँहासे का कारण बन सकती है?

चाय के सीधे मुँहासे का कारण बनने की संभावना नहीं है। हालाँकि, यदि आप बहुत अधिक चीनी या दूध के साथ चाय का सेवन करते हैं और आपको मुँहासे होने का खतरा है, क्योंकि ये तत्व संभावित रूप से कुछ व्यक्तियों में ब्रेकआउट में योगदान कर सकते हैं। चीनी या डेयरी युक्त पदार्थों के अत्यधिक सेवन से तैलीय उत्सर्जन बढ़ सकता है और छिद्र बंद हो सकते हैं। यह अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में मुँहासे को बढ़ा सकता है। यदि आप मुँहासे का अनुभव कर रहे हैं तो अपने समग्र आहार और त्वचा देखभाल दिनचर्या पर विचार करना आवश्यक है और व्यक्तिगत सलाह के लिए त्वचा विशेषज्ञ से परामर्श करें।

क्या चाय गैस पैदा कर सकती है?

हां, चाय कुछ व्यक्तियों में गैस का कारण बन सकती है, खासकर अगर इसमें दूध जैसी सामग्री होती है तो कुछ लोगों के लिए इसे पचाना मुश्किल हो सकता है। इसके अतिरिक्त, यदि आप कैफीन के प्रति संवेदनशील हैं और चाय पीते हैं, तो कैफीन की मात्रा संभावित रूप से गैस सहित गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल असुविधा में योगदान कर सकती है। यदि आप पाते हैं कि चाय नियमित रूप से आपके लिए गैस या पाचन संबंधी समस्याओं का कारण बनती है, तो आप यह देखने के लिए सामग्री को संशोधित करने या अपने सेवन को सीमित करने पर विचार कर सकते हैं कि क्या यह आपके लक्षणों में सुधार करता है।

क्या चाय में कैफ़ीन होता है?

हां, चाय में आमतौर पर कैफीन होता है। चाय में प्राकृतिक रूप से कैफीन होता है। चाय में कैफीन की मात्रा उपयोग की जाने वाली चाय के प्रकार और मात्रा और बनाने की विधि जैसे कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है। हालांकि, इसमें कॉफी की तुलना में कैफीन की मात्रा कम होती है। यदि आप कैफीन के प्रति संवेदनशील हैं या अपने सेवन को सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं, तो आप कैफीन रहित चाय का विकल्प चुन सकते हैं या पैकेजिंग पर कैफीन की मात्रा की जांच कर सकते हैं।

क्या चाय कैंसर का कारण बनती है?

चाय, आमतौर पर, दालचीनी और अदरक जैसे मसालों और दूध के साथ बनाई जाती है, जिसका आनंद दुनिया भर में लाखों लोग एक स्वादिष्ट और आरामदायक पेय के रूप में लेते हैं। इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि चाय कैंसर का कारण बनती है। हालांकि, संतुलित आहार के हिस्से के रूप में किसी भी भोजन या पेय का सेवन सीमित मात्रा में करना आवश्यक है।

क्या चाय मधुमेह के लिए अच्छी है?

चाय मधुमेह प्रबंधन के लिए फायदेमंद हो सकती है जब मध्यम मात्रा में और अतिरिक्त शर्करा पर ध्यान दिया जाए। चाय में ऐसे यौगिक होते हैं जो इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार कर सकते हैं। चाय में दालचीनी और अदरक जैसे मसालों को बेहतर रक्त शर्करा नियंत्रण से जोड़ा गया है। हालांकि, चाय व्यंजनों में अतिरिक्त शर्करा (सफेद और ब्राउन शुगर) से सावधान रहें, जो रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा सकते हैं। बिना मीठे या हल्के मीठे संस्करणों का चयन करें और चीनी के विकल्प का उपयोग करने पर विचार करें।

क्या चाय बच्चों के लिए अच्छी है?

चाय में कैफीन होता है, जो इसे छोटे बच्चों के लिए अनुपयुक्त बनाता है क्योंकि यह उनके विकासशील तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, डिकैफ़िनेटेड या हल्के से बनाए गए संस्करणों पर संयम में विचार किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, चाय के मसाले संभावित स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। फिर भी, समग्र पोषण मूल्य अतिरिक्त शर्करा और दूध की मात्रा जैसे कारकों पर निर्भर करता है। आपको बच्चों के सेवन के लिए इन कारकों की निगरानी करनी चाहिए।

क्या चाय गर्भवती महिलाओं के लिए अच्छी है?

गर्भवती महिलाओं को चाय का सेवन कम करना चाहिए क्योंकि इसमें कैफीन की मात्रा होती है, जो भ्रूण के विकास को प्रभावित कर सकती है। गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक कैफीन का सेवन गर्भपात और जन्म के समय कम वजन के जोखिम से जुड़ा हुआ है। कैफीन रहित चाय का विकल्प चुनना या दिन में एक कप तक सीमित सेवन करने की सलाह दी जाती है।

तथ्य जाँचः क्या आदिवासी तेल सभी प्रकार के जोड़ों के दर्द से पूर्ण राहत देता है?

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सारांश 

एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि आदिवासी Pain Relief Oil के जरिए जोड़ों के दर्द से राहत मिलेगी और जोड़ों का दर्द पूर्णतया खत्म हो जाएगा। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा गलत है। 

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दावा  

फेसबुक पर जारी एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि आदिवासी Pain Relief Oil के जरिए जोड़ों के दर्द से राहत मिलेगी और जोड़ों का दर्द खत्म हो जाएगा।

Adivasi oil claim

तथ्य जाँच 

जोड़ों में दर्द के क्या कारण होते हैं?

ऐसे कई कारण हैं, जिनकी वजह से आपको जोड़ों में दर्द का अनुभव हो सकता है। जैसे- 

  1. ऑस्टियोआर्थराइटिस: यह गठिया का सबसे आम प्रकार है। यह जोड़ों में उपास्थि यानी कि cartilage में हुई किसी प्रकार की क्षति के कारण होता है। उपास्थि लचीला ऊतक (tissue) है, जो हड्डियों के सिरों को सहारा देने का काम करता है। जब यह खत्म हो जाता है, तो हड्डियां आपस में रगड़ सकती हैं, जिससे दर्द, कठोरता और सूजन हो सकती है।
  2. रुमेटीइड आर्थराइटिस: इसे गठिया भी कहा जाता है। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो जोड़ों में सूजन का कारण बनती है। सूजन उपास्थि और हड्डी को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे दर्द, कठोरता और त्वचा लाल हो सकती है।
  3. बर्साइटिस (Bursitis): बर्साइटिस में तरल पदार्थ से भरी थैलियों में सूजन होने लगती है, जो घुटने के आसपास की हड्डियों, टेंडन और मांसपेशियों को सहारा देती है। यह अत्यधिक प्रयोग, चोट या कुछ बीमारियों के कारण हो सकता है।
  4. टेंडिनाइटिस (Tendinitis): यह टेंडन (Tendon) की सूजन है, जो एक कठोर ऊतक है। यह मांसपेशियों को हड्डी से जोड़ने का काम करती है। यह अत्यधिक उपयोग, चोट या कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों के कारण हो सकता है।
  5. चोट: मोच, खिंचाव या फ्रैक्चर सभी जोड़ों के दर्द का कारण बन सकते हैं। मोच और खिंचाव में क्रमशः ligaments or tendons पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वहीं फ्रैक्चर में हड्डियां टूट जाती हैं। 
  6. गाउट (Gout): यह एक प्रकार का गठिया है, जो एक या अधिक जोड़ों में दर्द और सूजन का कारण बनता है। इस दौरान जोड़ों में यूरिक एसिड क्रिस्टल का निर्माण होता है, जिससे जोड़ों में पीड़ा होती है। 
  7. ल्यूपस (Lupus): यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो जोड़ों सहित शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित कर सकती है। ल्यूपस जोड़ों में दर्द, कठोरता और सूजन उत्पन्न कर सकता है।
  8. वजन: अधिक वजन या मोटापे के कारण घुटनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे जोड़ों का दर्द हो सकता है। 

क्या आदिवासी तेल से जोड़ों के दर्द से छुट्टी मिल सकती है?

फिलहाल कहा नहीं जा सकता क्योंकि वीडियो में आदिवासी तेल को लेकर केवल दावे ही किए गए हैं। तेल को किन जड़ी-बुटियों से बनाया गया है या किस सामाग्री का इस्तेमाल किया गया है, इसकी जानकारी स्पष्ट तरीके से नहीं दी गई है। 

हालांकि कैप्शन में किसी अन्य तेल के बारे में लिखा गया है, जिसका नाम ऑर्थो निल पेन ऑयल है। जब हमने इस तेल के नाम के साथ गुगल सर्च किया तो हमें यह तेल विभिन्न ऑनलाइन मार्केटिंग साइट्स पर दिखा मगर किसी में आदिवासी तेल के नाम का जिक्र नहीं था। ऐसे में संभावना है कि इस तेल का प्रचार गलत तरीके से किया जा रहा हो। हम यह बिल्कुल नहीं कह सकते कि वीडियो में जिस तेल की बात की गई है, यह वही तेल है क्योंकि हमने केवल उस तेल के नाम के साथ ही Google पर ढूंढने का प्रयास किया। 

वहीं आदिवासी तेल के बारे में ढूंढने पर हमें यह वेबसाइट मिली, जो जोड़ों के दर्द से छुटकारा देने का दावा करती है। देखा जाए, तो वीडियो में जिस तेल की बात की गई है और जिस तेल के बारे में कैप्शन में लिखा है, यह दोनों अलग लगते हैं। 

क्या यह फेसबुक आईडी असली है?

नहीं। Dr. Mahi Singh के नाम से बनाई गई, जिस फेसबुक आईडी से इस आदिवासी तेल का प्रचार किया जा रहा है, वो आईडी भी फेक है क्योंकि जब हमने इस आईडी पर मौजूद तस्वीर को Google Reverse Image और Google Lens के जरिए ढूंढा, तो हमें Dr. Mugdha D. Vartak का नाम मिला। फेसबुक पर मौजूद तस्वीर का असली नाम Dr. Mugdha D. Vartak है और वो एक Consultant Obstetrician & Gynaecologist MBBS, DGO, FCPS, DNB(OBS & Gynaec) Obstetrics & Gynaecology है। 

Orthopedic

डॉ. सुशांत श्रीवास्तव, एमबीबीएस, एमएस (ऑर्थोपेडिक्स) एक अनुभवी ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं, जो बाल चिकित्सा ऑर्थोपेडिक्स में विशेषज्ञता रखते हैं। वे वर्तमान में बिहार के किशनगंज में माता गुजरी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज और लायंस सेवा केंद्र अस्पताल में ऑर्थोपेडिक्स विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। इस भ्रामक वीडियो के बारे में वे बताते हैं, “इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए विभिन्न संस्कृतियों में सरसों तेल में घरेलू सामाग्रियों, जैसे- लहसुन, प्याज आदि को मिलाकर लगाया जाता रहा है। इन उल्लिखित चीजों में सूजन-रोधी गुण होते हैं, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि इसे साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।” 

उन्होंने आगे बताया, “वर्तमान चिकित्सा देखभाल साक्ष्य आधारित चिकित्सा पर काम करती है इसलिए ऐसी किसी भी चीज़ का उपयोग करना सही नहीं होगा जो वैज्ञानिक रूप से समर्थित न हो क्योंकि इस तेल की सामग्री को लेकर वीडियो में कोई जानकारी नहीं है। साथ ही यह बात भी ध्यान रखने की जरूरत है कि जोड़ों का दर्द विभिन्न कारणों से हो सकता है। ऐसे में किसी ऐसे तेल पर भरोसा कर लेना और बिना उसके दूरगामी परिणाम जाने, उसका इस्तेमाल करते रहना जोड़ों के दर्द को बढ़ सकता है। ऐसे में जरुरी है कि वक्त रहते अपने चिकित्सक से संपर्क करें।”

किसी भी उम्र में जोड़ों से संबंधित दर्द से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

डॉ. सुशांत आगे बताते हैं कि किसी भी उम्र में घुटनों के दर्द या अन्य जोड़ों से संबंधित दर्द से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं- 

  • स्वस्थ वजन बनाए रखना: वजन के बढ़ने से घुटनों एवं जोड़ों पर अत्याधिक भार का अनुभव होता है, जिससे जोड़ों पर तनाव बढ़ता है। स्वस्थ वजन बनाए रखने से ऑस्टियोआर्थराइटिस (गठिया) होने की संभावना कम हो सकती है। वहीं यदि आपको पहले से ही गठिया है, तब आपको अपने वजन को नियंत्रित रखना चाहिए। किसी व्यक्ति को कितना वजन रखना चाहिए इसका अंदाजा लगाने के लिए ब्रोका इंडेक्स (Broca’s Index) (ऊंचाई सेमी में -100 = आदर्श वजन किलोग्राम में) का उपयोग किया जा सकता है। 
  • शरीर को सक्रिय रखना: देखा जाए, तो नियमित व्यायाम करने से या शारीरिक गतिविधि करते रहने से जोड़ों के आसपास की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है। एरोबिक व्यायाम करना भी फायदेमंद हो सकता है। इसके अलावा तैराकी (swimming) या साइकिलिंग भी अच्छे विकल्प हो सकते हैं। कोई भी ऐसी गतिविधि अपनाई जा सकती है, जो आपके लिए उपयुक्त हो। 
  • उचित तकनीक का उपयोग करना: चाहे कोई व्यायाम हो, भारी वस्तु उठाने का काम हो या कोई दैनिक गतिविधि हो, सही तकनीक का उपयोग करने से जोड़ों को अनावश्यक तनाव से बचाने में मदद मिल सकती है। जैसे- किसी भारी सामान को अचानक ना उठाते हुए, धीरे-धीरे उसके भार को उठाना। 
  • संतुलित आहार का सेवन करना: उचित और पर्याप्त मात्रा में संतुलित आहार का सेवन स्वस्थ जोड़ों को बनाए रखने के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान कर सकता है। ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर कुछ खाद्य पदार्थ (जैसे मछली) जोड़ों के स्वास्थ्य में मदद कर सकते हैं। अपने आहार में सूखे मेवे और कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल कर सकते हैं।
  • हाइड्रेटेड रहना: Cartilage एक कठोर लेकिन लचीली ऊतक होती है, जो 65-80 प्रतिशत पानी से बनी होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ cartilage अपनी शक्ति खोने लगती है, जिसके बाद ‘मैट्रिक्स’ इस कार्य को गति देने का काम करता है इसलिए जोड़ों के स्वास्थ्य और कामकाज को बनाए रखने के लिए अच्छी तरह से हाइड्रेटेड (पानी की कमी ना होने देना) रहना महत्वपूर्ण है। 
  • दर्द को नजरअंदाज न करें: अगर आपको जोड़ों में दर्द हो रहा है, तो इसे नजरअंदाज न करें क्योंकि शरीर दर्द के जरिए ही संकेत देने का प्रयास करते हैं कि शरीर में कोई परेशानी उत्पन्न हो रही है। यदि आपको लगातार दर्द या सूजन है, तो चिकित्सीय सलाह लें।
  • नियमित जांच: नियमित चिकित्सीय जांच से जोड़ों की समस्याओं का जल्द पता लगाने में मदद मिल सकती है और सही उपचार तुरंत शुरू किया जा सकता है। याद रखें, ये केवल सामान्य दिशानिर्देश हैं और अलग-अलग ज़रूरतें व्यक्ति-दर-व्यक्ति भिन्न हो सकती हैं। व्यक्तिगत सलाह के लिए हमेशा प्रमाणित स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श लें।

अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं विश्लेषण से पता चलता है कि यह दावा बिल्कुल गलत है क्योंकि इसका उद्देश्य लोगों को राहत पहुंचाना नहीं बल्कि उन्हें ठगी का शिकार बनाना है। हमने पहले भी इस तरह के दावों की पड़ताल की है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।